शुक्रवार, मार्च 29, 2013

कमरे की खिड़की से 
बाहर झांकता हूँ तो 
बिटिया 
कुम्लाये गुलाब में 
पानी दे रही थी 
बेटी रहने दे क्यों काँटों को सींच रही हो 
मैंने कहा 
बिटिया कहती है 
पापा कांटे हैं तो फूल भी आयेंगे  
मैंने कहा बेटी कांटे रह जायेंगे 
इस गुलाब के फूल की आस में 
कई गुलदान हैं  
इस साल 18 की हो रही बिटिया 
जल्दी से बाल्टी का पानी 
गमले में उड़ेलती है 
मैं खिड़की से अन्दर झांकता हूँ 
और 
 काँटों से लहूलुहान उँगलियों के पोर 
मेरी कमीज को लहूलुहान करते जा रहे हैं 
आँखें दीवार पर टंगे कलेंडर पर टिकती हैं 
और मैं 65 वर्षों के हिसाब-किताब में खो
रहा हूँ 

रविवार, दिसंबर 23, 2012

दामिनी..हमारे कुतरे नाखून हैं   

जिस बस में 
तुम्हारे साथ दरिंदगी की गयी 
उन सीटों पर छह दरिंदों के 
निशान ही नहीं है 
दरअसल तुमने भी देखा होगा उन धब्बों को
इससे पहले आते जाते बसों में  
इसलिए मैं जुर्म कुबूल करता हूँ 
क्योंकि 
दरिंदगी के पंजों में लहू हमारा ही तो है  
तभी तो तुम लहूलुहान होती रही हो 
कभी चलती बस में 
कभी किसी वैन में 
और कभी स्कूल में 
हम उठे है 
अखबार में रात की दरिंदगी के निशान खोजने 
और सो गए हैं आँखों से हकीकत खुरचकर 
हम कभी निकले नहीं घरों से तुम्हारे लिए 
या शायद हम अपने घरों में ही नंगे हो चुके हैं 
बहुत पहले 
माफ़ करना इस बार भी 
हम वापस लौट जायेंगे 
तुम्हें ही लड़ना होगा
अस्पताल से निकलकर 
दरिंदगी के पंजे
घूम रहे हैं बसों में पहले की तरह 
तुम्हें बस में करने को 
लेकिन 
मुझे भरोसा है 
तुममे साहस पैदा हो गया होगा  
तुम्हारे भी उग आये होंगे नुकीले नाखून 
हे दामिनी- 
हम अपने घरों में ही कुतर चुके हैं अपने नाख़ून 
भला 
कुतरे नाखून तुम्हारी मदद को क्या आयेंगे 
------दिल्ली में हुए गैंगरेप ने सबकुछ झकझोर दिया है पांच साल की बेटी और पत्नी दोनों दिन में कई बार टीवी खोलकर सफदरजंग अस्पताल से आने वाली खबर पर नज़र बनाये रहती हैं पत्नी फोन करके जब मुझसे कुछ पूछना या कुछ बताना चाहती है और मैं फोन उठा नहीं पता हूँ। 

शुक्रवार, जून 17, 2011

a drop of happiness..

a drop in the drought..
a thing to thought..
smile..smile..and smile..
after long dry seasons
happiness season brought
cheers..cheers..cheers to all

रविवार, फ़रवरी 13, 2011

बीमार शहर के हम मरीज

हम मरीज ही तो हैं
इस बीमार शहर के
जो चले आते हैं
इलाज की उमीद में
और
कई बिमारियों की ज़द में
खुद को फंसा देने की खातिर
यहाँ
वहां
माँ हैं जो बुलाती है
लौट आने की नहीं कह पाती
क्योंकि
उसने
संतोष करना ही तो सीखा
अपने पिता से मेरे पिता की होते जाने में
अब जब पिता हूँ मैं भी
माँ
फिर संतोष कर लेती है
शायद एक दिन पोती ले आये
बीमार शहर के मरीज को
गाँव की छाव में

शुक्रवार, अक्तूबर 01, 2010

अयोध्या

अयोध्या
तीन
टुकड़े
बंटेगी
क्या
अब ?
गंगा-जमुना
पानी में
फर्क है क्या?
मस्जिद का दावा
ख़ारिज
फिर भी
मुसलमानों
को
जमीं का टुकड़ा
क्या
रामलाल्लों की
तरह
मुसलमानों को भी
आस्था का न्याय मिला
क्या?
वैसे
तीन टुकड़े
क्या कभी
टुकड़ों से जुड़ा
कुछ ?
शायद
अयोध्या से हो
शुरुआत
हाँ..
शायद ?




बुधवार, सितंबर 29, 2010

नई इबारत

३० सितम्बर
फैसले की घड़ी
या...
नई इबारत
लिखने का अवसर
तय...
हम ही को करना..
अदालत
फैसला सुनाती है
सिर्फ
मायने हम ही को गाड़ने होते हैं
उसके
आने वाली नस्लों को
नई सुबह देने का अवसर
फिर आया
मखमली दोस्ती
या रक्तरंजित भाईचारा
क्योंकि
भाई-भाई होने से
तो बलवाई भी
नहीं रोक सकता हमको
क्या रोक सकता है..?
२ अक्टूबर को
बापू के लिए जब कुछ देर का वक़्त निकालेंगे
तब तुम और हम ही को ये सोचना है
इसबार
अवसर है...

बुधवार, सितंबर 15, 2010

माँ

न सिक्का न स्याही और न सरकार
अजीब शख्स है बस दुआ चाहता है
घर के सेहन की हो रही है किलेबंदी
शाम घर लौटे तो वो बस माँ चाहता है ...दिलबर

बुधवार, सितंबर 08, 2010

दोस्ती

तमाम उम्र दोस्ती में गुजार डाली
मुहरबंद लिफाफे की दोस्ती कमा ली
वो कह कर गया है कि नहीं लौटेगा
आखरी वक्त में ये अना कैसी कमा ली

सोमवार, अगस्त 30, 2010

वो कहता है...

....वो कहता है...

मेरा उससे
कोई
नाता न रहा
उसका मुझसे
कोई
रिश्ता न रहा
दीये से दोस्ती
जबसे टूट गयी
आंखें अंधेरों से
जोर-आजमाईश को
बेताब हो गयी

शनिवार, अगस्त 28, 2010

दवा या दूध

माँ कहरही थी दवा
ले आओ
लेकिन
उसकी
बेटी ने कहा
दूध पीना है

सोमवार, अगस्त 16, 2010

निर्वात के सन्नाटे में कोलाहल

लगता है जिस्म से एक कतरा अपना काट लिया हो मैंने ही किसी ने खुद पर घाव करने को मजबूर कर दिया हो जैसे क्यों ऐसा होता है कि हम मिलते हैं तो भोर कि उजास लिए मिलते हैं और बिछड़ते हैं तो संध्या की निराश धूल पुते चेहरे लेकर पीठ के नंबर दिखा देते हैं लेकिन क्या बिछड़ने की पीड़ा किसी एक की हो सकती है या जिसे गुनाहगार हम कहें वो ही गुनाहगार हो जाये

बुधवार, अगस्त 04, 2010

कलमाड़ी के कारनामे

एक
सुरेश कलमाड़ी
फिक्सिंग
के
बड़े खिलाडी
कॉमनवेल्थ गेम्स
के
कर्ताधर्ता
भ्रष्टन के भर्ता




सोमवार, अगस्त 02, 2010

जंतर-मंतर

दिल्ली का जंतर-मंतर
बेखबर सरकारें
ख़बरदार करने की 'कोशिशें'
लेतीं आसरा
फुटपाथ का
पुलिस आमादा
कोशिशों को कुचलना
उसकी ड्यूटी है
भोपाल गैस पीड़ित भी
एक कोशिश में
बैठे थे जंतर-मंतर
मानसून सत्र जारी
क्या पता नेताओं के कम सुनने के
आदी कानों में भोपाल गैस पीड़ितों
का दर्द सुनाई पड़े
लेकिन
एंडरसन जाते जाते
छोड़ गए वारिस अपने
जो कभी सफेदपोश
कभी खाकी में
जंतर मंतर पर
कोशिशों को
आश्वासनों व् लाठी डंडों के बीच
दम तोड़ने देते हैं


गुरुवार, जुलाई 29, 2010

हम हिंदी वीर

बहस छिड़ी थी
दिल्ली में हो रहे राष्ट्रमंडल खेलों में
प्रयोग हो हिंदी का
मंच पर विराजमान
नेता, साहित्यकार, नेता -साहित्यकार
साहित्यकार से नेता और फिर नेता से साहित्यकार बने
सज्जन ने नाम पुकारा एक हिंदी प्रेमी नेता का
नेताजी माइक लपकते ही गलाफाड़ आसन में
'नहीं होने देंगे हिंदी के बिना कामनवेल्थ गेम्स
चाहे जो हो जाये॥
बगल से आवाज आई कामनवेल्थ गेम्स या राष्ट्रमंडल खेल
रो में बहे नेताजी अनसुना कर गए
बोले- ओपनिंग और क्लोजिंग सरेमोनी हिंदी में ही हो
नहीं तो हम पार्लियामेंट नहीं चलने देंगे
इस बार
उदघाटन और समापन की कानाफूसी नहीं हुई
घूम कर देखा तो
बगल की दो कुर्सियां खाली हो चुकी थी
नेताजी भी अपनी कुर्सी पर बैठे पसीना पोंछ रहे थे
प्लेट, चम्मचों की कहासुनी
देखा तो नौ बज चुके थे
कैमरामैन को पैकअप का इशारा कर
डिनर प्लेटों को हथियार बना
मैं भी लड़ रहा था
अस्तित्व की जंग
हिंदुस्तान में हिंदी की तरह

मंगलवार, जुलाई 27, 2010

गैस का चूल्हा
खाली
सिलेंडर
दिल्ली के हम
कैसे कलंदर
कल
घर मेरे आये थे
दोस्त
चाय पर
प्याले में
होने का अहसास कराते
दूध-पत्ती-चीनी
और
दोस्तों के बीच मैं भी
तभी
दोस्त बोल पड़ा
यार..पवन
छ साल हो गए
दिल्ली में अंगद के पाँव की तरह जमे हो
सच यार तुम ही
विकटअर्स की सिटी के
असली विक्टर हो
मैं बिस्कुट के टुकड़ों
और
बेटी की नन्ही उँगलियों
के बीच
अपना साम्राज्य
तलाशता
दोस्त के नए शेर की दाद
दे रहा था..

गुरुवार, जुलाई 22, 2010

आग...कहीं झुलस ना...

ये
आग की लपटें
सर्पिणी हैं
जो
मुझे निगल
जाने को आतुर हैं
या
मेरे सीने की
पिघलती
लावा उगलती
मृगतृष्णा
जो मांग रही
कस्तूरी
विक्टर
बनने की
कि कहते हैं
ये सिटी
है विकटअर्स की...



शुक्रवार, जुलाई 16, 2010

बुलबुल

मन
अनमना
मृत्यु को
गले
लगा लूँ
क्या
उसने कहा
भाग
जाओ
जो
बच सको
लेकिन
जेब में
छुपाकर
दो
अपनी
बुलबुलें
भी
लेते जाओ
बुलबुलें..
जेब में
हाथ दिए
लौट
रहा
मन
अनमना ..

रविवार, जुलाई 11, 2010

नारे नहीं गाने

तीन...
सियासत हुई गूंगी ना सूझ रहा कोई नारा,
कांग्रेस ने किया था 'जय हो' से जयकारा।
महंगाई की चक्की में पिसता गरीब-किसान,
बीजेपी का 'महंगाई डायन' से चले गुजारा।

शुक्रवार, जुलाई 09, 2010

ज़ुबानी जमाईगीरी

दो..
संघ हमेशा देता संस्कृति, संस्कार की दुहाई,
दुलारे गडकरी को क्यों लाज फिर ना आई।
लालू-मुलायम को कुत्ता कह फंसे पहले,
अब, आतंकी अफज़ल पर जुबान लड़खड़ाई,
फांसी तो लगेगी तब लगेगी कांग्रेसीराज है,
जुबान क्योंकर अपशब्दों की बलि चढ़ाई ।

गुरुवार, जुलाई 08, 2010

महंगाई..मनमोहन मक्कारी

एक...
महंगाई की मारामारी,
आम आदमी की लाचारी,
बीजेपी-लेफ्ट की बंदकारी,
घबराता क्यों है भाई, ये
'पवन' चली मनमोहनी बाजारी।

सोमवार, जुलाई 05, 2010

लेह में मैं






























लेह में ये धीरेन्द्र द्वारा ऑफिस के मूविंग कैमरे से खिंची गयी मेरी कुछ फोटो हैं कोशिश करूँगा अगर अपना एडिटर सुरेश ने सहयोग किया तो सिन्धु दर्शन यात्रा के रंग भी आप साथियों से साँझा करूँगा क्योंकि अपने पास तो कैमरा है नहीं जो भी तस्वीरें उतारी गयी सब ऑफिस के कैमरे से ही

शनिवार, जुलाई 03, 2010

सिन्धु दर्शन यात्रा..

माफ़ी चाहूँगा एक बार फिर अपनी दो टके की नौकरी और एक टके की भागमभाग ने अपना सिन्धु दर्शन यात्रा वृतांत आप लोगों तक पहुँचाने में आड़े आ गए २३ जून को लेह के हवाई अड्डे पर पहुंचते ही दिल्ली और जयपुर आदि कई शहरों से आये तीर्थ यात्रियों के साथ अपना और कैमरा सहयोगी धीरेन्द्र का पारंपरिक लद्दाखी वाद्य यंत्रों के साथ स्वागत हुआ लद्दाखी बच्चों-बच्चियों ने पुष्प वर्षा की तो आयोजको की तरफ से भेजे गए स्थानीय टैक्सी चालकों ने नाम लिखी तख्तियों के इशारे से बुलाया और हम अपने हंसमुख चालक दोरजी के साथ पहुँच गए अपने होटल पूरे होटल में सिन्धु दर्शन करने आये तीर्थ यात्री ही ठहरे थे मैं और धीरेन्द्र रह-रह कार अपने को कोस भी रहे थे कि यार हवाई यात्रा और लेह का टूर तो ठीक है लेकिन नेताओं के पीछे बाईट के लिए दौड़ने वाले हम लोग इन संत आत्माओं के साथ अगले तीन दिन क्या करेंगे उससे भी बड़ा झटका तब लगा जब मैंने अपना फोन उठाया कि यार बॉस और घर वालों को बता दें कि लेह पहुँच गये हैं लेकिन यहाँ आकार लगा कि दुनिया मुट्ठी में करने वाले छोटे अम्बानी साहब का जलवा नहीं चलता है यहाँ तो बस बीएसएनएल जिसे हम अक्सर भाई साहब नहीं लगता कह करधुत्कारते रहते है , ही कम करता है थोडा बहुत एयरटेल भी कम करता है अब टीवी रिपोर्टर का फोन काम न करे तो आप समझ सकते हैं क्या स्थिति होगी अब शुरू हुआ नया फोन जुगाड़ने का खेल और संकट में काम आये एक संत जिन्होंने अपना एयरटेल सेवाप्रदाता मोबाइल हमे थमा दिया ये कहते हुए कि जब तक यहाँ है इसे अपना फोन समझ कर इस्तेमाल करो। शायद मीडिया वालों की थोड़ी-बहुत इज्ज़त आबरू है कुछ गिने चुने लोगों KI नज़रों MEIN या फिर यह रहा होगा की यात्रा के दौरान एक आध बार कैमरा चेहरे पर डाल देंगे खैर जो भी वजह रही अपने ko बड़ी rahat मिली भाई अब शुरू हुआ यहाँ के माहौल में ढलने का क्रम प्राण वायु की कमी महसूस होने लगी शुभ चिंतको ने नसीहत दी थी की काम से काम एक दिन तो कमरे में पड़ बिस्तर गर्म करना लेकिन आराम करना अपनी फितरत और शायद किस्मत में कहाँ गर्म कम्बल में निढाल हो चुके धीरेन्द्र को ऊँगली करनी शुरू कर दी उठो यार विसुअल कैसे जायेंगे चलो बाज़ार घूम-घाम कर पता लगायें आमतौर पर रिलायंस वेब वर्ल्ड से विसुअल्स भेजते हैं लेकिन यहाँ तो ये सुविधा उपलब्ध है नहीं सो किसी साइबर कैफे से पता लगाना था कि क्या कोई आप्शन है बाज़ार घूमे तो उम्मीद बंधी कि अपने मुख्यालय रामोजी फिल्म सिटी हेदराबाद विसुअल्स भेजे जा सकेंगे वापस होटल आये तो यात्रा के संरक्षक इन्द्रेश कुमार कि प्रेस कांफेरेंस कवर करनी थी वहीँ अपने लेह-लद्दाख और कारगिल को कवर कर रहे स्ट्रिंगर गुलाम नबी जिया जी से मुलाकात हुई बड़े भाई जिंदादिल जिया जी ने कहाँ कि ये टेंशन मुझ पर छोड़ दो प्रेस कांफेरेंस का दो-तीन मिनट का विसुअल जिया भाई के हवाले कर हम सिन्धु दर्शन यात्रियों के साथ निकल पड़े लेह से कुछ दूर स्थित भारतीय विद्या निकेतन..शिंदु दर्शन यात्रा समिति और शायद एक दो और संस्थाओं के सहयोग से लद्दाखी बच्चों के लिए चलाया जा रहा आवासीय स्कूल यहाँ यात्रिओं का आदर अभिनन्दन होना था यहाँ भी लद्दाखी बच्चियों ने सबका पारंपरिक शैली में स्वागत किया और फिर मंच से इन्द्रेश जी ने देश भर से आये यात्रिओं का परिचय करते हुए सिन्धु दर्शन यात्रा के बारे में बताना शुरू किया इतनी ऊंचाई पर होने का अहसास लगातार प्राण VAYU कि कमी के चलते हो रहा था लेकिन इन्द्रेश जी के उद्बोधन से जुडाव होने लगा था उन्होंने बताया कि १९९७ में ये यता शुरू हुई थी और आज चौध्वी यात्रा के पड़ाव पर हैं और यात्रियों की संख्या आठ....अस्सी से आठ सौ हो चली है उन्होंने कहा कि इस यात्रा का मकसद धार्मिक और ऐतिहासिक होने से ज्यादा लद्दाख को देश की धड़कन से जोड़ना और यहाँ की आर्थिक सेहत सुधारना है इसके लिए उन्होंने आकडे भी दिए कि कैसे सिन्धु दर्शन यता महोत्सव ने टूरिस्टों की एक नयी पौध तैयार कर दी है ... सिन्धु दर्शन यात्रा के महत्व और अभिनन्दन एवम यात्रा के कार्यक्रमों के बारे में जानकारी देने के बाद शुरू हुआ सिंधियों का झूले लाल नांच गाना बाकि वृतांत अगली बार

मंगलवार, जून 29, 2010

उड़ान लेह की

इस बार लम्बा समय लगा अपने ब्लॉग की सुध लेने का..क्योंकि इस बार दिल्ली तक ही अपनी गला फाड़-लिखाड़ पत्रकारिता नहीं हुई बल्कि अबकी बार लेह की ऊँची पहाड़ियों में भी चिल्लाने का मौका मिल गया हुआ यूँ कि अपने को चौदहवी सिन्धु दर्शन यात्रा को कवर करने के लिए सेठ लोगों(मेरा चैनल) ने लेह जाने का फरमान सुनाया...मेरे लिए तो ये दूसरा मौका था आउट डोर शूट पर जाने का..और वो भी हवाई जहाज़ से सो फरमान मिलते ही मन मचलने लगा कि चलो इसी बहाने ज़मीन पर जगह न मिल रही हो तो न सही इस ग़ुरबत में आसमान में ही कुछ ज़मीन नाप अपने नाम कर ली जाये..इस शूट को लेकर एक उत्साही होने कि एक वजह ये भी थी कि इसका आयोजन संघ परिवार से जुड़े लोग ही करवा रहे थे..बड़ी आलोचना होती है अपनी बिरादरी में भगवा ब्रिगेड की लेकिन सच कहूँ तो अपने को कभी भी बिना स्वयं जाने मज़ा नहीं आता किसी को भी गरियाने में.इसीलिए सोचा कि चलो देखे इनको भी करीब से..२३ की सुबह ऑफिस की गाड़ी ने ४ बजे ही दस्तक दी और मैं पहले से मौजूद अपने कैमरा सहयोगी धीरेन्द्र साहू के साथ हो लिया हवाई अड्डे की तरफ रवाना साथ में रत की पाली के रिपोर्टर भी बैठे थे जो अपने अति उत्साह के चलते घरेलूकी बजे अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर लेकर पहुँच गए ६.३० की फ्लाईट थी और ५ वही बज गए थे.. किसी ने नसीहत दी थी की फ्लाईट से १.३०-२.०० घंटे पहले पहुँचाना होता है..५.१५ बजे घरेलू हवाई अड्डे पहुंचे और जैसे तैसे जेट की परिचारिकाओं से पूछताछ कर टिकेट और सुरक्षा सम्बन्धी ओपचारिक्ताओं से फारिग होकर जेट की बस पकड़ प्लेन की और भागे..आसमान में कागज के हवाई जहाज़ जैसा दिखने वाला प्लेन नज़दीक गए तो बड़ा विशालकाय नज़र आया दो खूबसूरत और छरहरी परिचारिकाओं ने टिकेट चेक कर मंगलमय यात्रा की शुभकामनाओं के साथ प्लेन में चढ़ने के लिए आमंत्रित किया और मैं और साहू चढ़ बैठे जेट के उड़न दस्ते में साहू पहले भी एक आध बार उड़ चुका था लेकिन अपने लिए तो हर पल कौतुहल था जसे ही शीट बेल्ट बंधने का आदेश हुआ और जहाज़ रनवे पर सरपट दौड़ने लगा अपनी सांसे भी अटकने लगी साथ ही रोमांच भी जहाज़ के साथ सातवे आसमान पर पहुँच गया था१.३० घंटे के बाद लेह की बर्फीली वादियों में उतरना किसी बिन मांगी हसीन मुराद के पूरा होने जैसा था लेह के छोटे से एयर पोर्ट पर उतरे तो शीत लहर ने स्वागत किया वैसे प्लेन से उतरने से पहले ही आगाह कर दिया गया था कि तापमान ७-८ डिग्री से ज्यादा नहीं मिलेगा झट शरीर को ओवर कोट के हवाले कर हम होटल कि राह हो लिए जहाँ कुछ अपरिचित लोगों ने परिचितों जैसा व्यवहार कर लेह में भी अपनत्व का भाव पैदा कर दिया...
अब सिन्धु दर्शन यात्रा अगली किस्तों में होगी फ़िलहाल तो मोर्निंग ड्यूटी है और ८ बजे के बुलेटिन में लाइव कर इतना सब लिख डाला लेकिन अब आदेश हुआ है कि कांग्रेस मुख्यालय की तरफ जाया जाये क्योंकि सरकार ने आम आदमी की रसोई का नून-तेल महंगा करने के बाद फेफड़ों को अपने धुऐं से सकती गाड़ियों का तेल-पानी भी महंगा कर दिया है जय जवान जय किसान का नारा देनेवाले पूर्व प्रधान मंत्री स्वर्गीय शास्त्री के बेटे ने विरोध कर दिया है सरकार के फैसले का सोनिया गाँधी से हस्तक्षेप की मांग की है जैसे जब मनमोहन साहब तेल महंगा कर रहे थे तब सोनिया जी सो रही थी...क्या दिल्ली दरबार में भी दिए टेल अँधेरा रहता है...? जाता हूँ किसी कांग्रेसी से पूछकर बताऊंगा ...

बुधवार, जून 16, 2010

मंदी..और मेरा मानसिक मेल्टडाउन

आजकल दिलोदिमाग में यही सवाल बार बार उमड़ रहा है कि क्या अब मीडिया से तौबा कर ली जाये क्योंकि अब यहाँ न बड़ा पत्रकार बनने कि गुंजाईश बाकि रही है और न ही पैसा ही रहा है जी हाँ अब लगने लगा है कि यहाँ और खटने की बजाय अन्य विकल्पों पर भी विचार कर लेना चाहिए..कहीं ऐसा न हो की अपने तथाकथित पैशन के चाकर में पत्नी-बेटी के भविष्य से खिलवाड़ हो जाये..लेकिन मन के एक कोने से फिर यही आवाज़ आती है कि यार क्या इस फिएल्ड में सिर्फ नाम और पैसा ही कमाने आये थे या कुछ करने का जज्बा लेकर ये सोच कर फिर काम करने लगता हूँ लेकिन तभी कोई मित्र या शुभचिंतक नसीहत देता है कि भाई जरा पीछे मुड़कर अपने पञ्च साल का हिसाब तो लगा कि तेरे चैनल ने क्या दिया इस दौरान और आगे बता कि क्या दे देगा मैं दलील दे देता हूँ कि यार एक बुरा फेज़ गुजर चूका है और जल्द अच्छे दिन आयेंगे दोस्त मन मारकर चुप भी हो जाता है लेकिन सुबह सैट बजे ऑफिस पहुँच कर शाम सात चालीस की ७५३ नंबर बस पकड़ कर जब भीड़ की ढाका-मुक्की में मन एकाग्रचित होकर सवाल करता है की क्यों पिछले बारह घंटों की मेहनत के बाद क्या लेकर जा रहे हो अपनी पौने तीन साल की नन्ही जन के लिए पत्नी के लिए तो खैर कभी कुछ लेकर गया ही नहीं क्या हम छोटका चैनलों के छोटके पत्रकारों के दिन भी कभी बहुरेंगे बहरहाल मंदी छटने लगी है दुनिया की अर्थ्ब्यावास्थों से और मेरे मन से भी.. मानसिक मेल्ट डाउन...

शनिवार, जून 05, 2010

परीक्षा हाल

पिछले ३-४ वर्षों के बाद एक बार फिर परीक्षा हाल का नजारा देख रहा हूँ..अपनी ३-४ साल से पूरी नहीं हो पा रही पत्रकारिता की मास्टर डिग्री को पूरा करने की सोची है। एक तो इग्नू से पीजी डिप्लोमा करने में ही ३-४ साल लग गए..साथ दाखिला लेने वाले भाई लोगन तो मास्टरी भी करने लगे है..लेकिन अपन आज भी नांगलोई के नाथू राम कॉन्वेंट स्कूल में एम ए फ़ाइनल इयर के पेपर दे रहे है..जैसे तैसे दो तो निपट-निपटा गए बाकि तीन भी निपट जायें..दरअसल..जैसे तैसे पेट पूजा हो ही रही है लेकिन किसी ने कहा पीजी डिप्लोमा है तो लेटरल टर्म से केयूके से एम ए कर लो..किसी साथी ने नसीहत दी और कुछ नहीं तो कम से कम इस मीडिया की भीड़ से जब बाहर ढेल दिये जाओगे तो कहीं पढ़ा तो लोगे..या फिर कहीं पीआरओ ही बन जाना..पांच साल की पत्रकारिता की थकेती के बाद अब कभी कभी मुझे भी सोच कर डर सा लगने लग जाता है..और इसी डर की जद में खुद को परीक्षा हाल में पसीना-पसीना पाता हूँ...दिन में परीक्षा देता हूँ तो रात्रि पली में ऑफिस में ड्यूटी बजाता हूँ...ऑफिस आया तो पता चला कि मुझे सोमवार अल सुबह ही चंडीगढ़ के लिए निकलना है..सूचना और प्रसारण मंत्री अम्बिका सोनी राज्यसभा के लिए नामांकन भरेंगी...रविवार को गाँव भी जाना है कई दिनों के बाद..गाँव में पंचायत चुनाव का सीजन है...हाँ राजीव गाँधी दे गए गाँव वालों को भी प्रधानी करने का मौका..ठीक है इसी बहाने गरीब लोगों के होटों पर भी देसी-विदेशी नमकीन पानी लग जाता है..वर्ना वोट तो वैसे भी किसी न किसी को तो देना ही होता है..घर में रखकर कौन सा मुरब्बा बनता है इसका ॥