शनिवार, जुलाई 03, 2010

सिन्धु दर्शन यात्रा..

माफ़ी चाहूँगा एक बार फिर अपनी दो टके की नौकरी और एक टके की भागमभाग ने अपना सिन्धु दर्शन यात्रा वृतांत आप लोगों तक पहुँचाने में आड़े आ गए २३ जून को लेह के हवाई अड्डे पर पहुंचते ही दिल्ली और जयपुर आदि कई शहरों से आये तीर्थ यात्रियों के साथ अपना और कैमरा सहयोगी धीरेन्द्र का पारंपरिक लद्दाखी वाद्य यंत्रों के साथ स्वागत हुआ लद्दाखी बच्चों-बच्चियों ने पुष्प वर्षा की तो आयोजको की तरफ से भेजे गए स्थानीय टैक्सी चालकों ने नाम लिखी तख्तियों के इशारे से बुलाया और हम अपने हंसमुख चालक दोरजी के साथ पहुँच गए अपने होटल पूरे होटल में सिन्धु दर्शन करने आये तीर्थ यात्री ही ठहरे थे मैं और धीरेन्द्र रह-रह कार अपने को कोस भी रहे थे कि यार हवाई यात्रा और लेह का टूर तो ठीक है लेकिन नेताओं के पीछे बाईट के लिए दौड़ने वाले हम लोग इन संत आत्माओं के साथ अगले तीन दिन क्या करेंगे उससे भी बड़ा झटका तब लगा जब मैंने अपना फोन उठाया कि यार बॉस और घर वालों को बता दें कि लेह पहुँच गये हैं लेकिन यहाँ आकार लगा कि दुनिया मुट्ठी में करने वाले छोटे अम्बानी साहब का जलवा नहीं चलता है यहाँ तो बस बीएसएनएल जिसे हम अक्सर भाई साहब नहीं लगता कह करधुत्कारते रहते है , ही कम करता है थोडा बहुत एयरटेल भी कम करता है अब टीवी रिपोर्टर का फोन काम न करे तो आप समझ सकते हैं क्या स्थिति होगी अब शुरू हुआ नया फोन जुगाड़ने का खेल और संकट में काम आये एक संत जिन्होंने अपना एयरटेल सेवाप्रदाता मोबाइल हमे थमा दिया ये कहते हुए कि जब तक यहाँ है इसे अपना फोन समझ कर इस्तेमाल करो। शायद मीडिया वालों की थोड़ी-बहुत इज्ज़त आबरू है कुछ गिने चुने लोगों KI नज़रों MEIN या फिर यह रहा होगा की यात्रा के दौरान एक आध बार कैमरा चेहरे पर डाल देंगे खैर जो भी वजह रही अपने ko बड़ी rahat मिली भाई अब शुरू हुआ यहाँ के माहौल में ढलने का क्रम प्राण वायु की कमी महसूस होने लगी शुभ चिंतको ने नसीहत दी थी की काम से काम एक दिन तो कमरे में पड़ बिस्तर गर्म करना लेकिन आराम करना अपनी फितरत और शायद किस्मत में कहाँ गर्म कम्बल में निढाल हो चुके धीरेन्द्र को ऊँगली करनी शुरू कर दी उठो यार विसुअल कैसे जायेंगे चलो बाज़ार घूम-घाम कर पता लगायें आमतौर पर रिलायंस वेब वर्ल्ड से विसुअल्स भेजते हैं लेकिन यहाँ तो ये सुविधा उपलब्ध है नहीं सो किसी साइबर कैफे से पता लगाना था कि क्या कोई आप्शन है बाज़ार घूमे तो उम्मीद बंधी कि अपने मुख्यालय रामोजी फिल्म सिटी हेदराबाद विसुअल्स भेजे जा सकेंगे वापस होटल आये तो यात्रा के संरक्षक इन्द्रेश कुमार कि प्रेस कांफेरेंस कवर करनी थी वहीँ अपने लेह-लद्दाख और कारगिल को कवर कर रहे स्ट्रिंगर गुलाम नबी जिया जी से मुलाकात हुई बड़े भाई जिंदादिल जिया जी ने कहाँ कि ये टेंशन मुझ पर छोड़ दो प्रेस कांफेरेंस का दो-तीन मिनट का विसुअल जिया भाई के हवाले कर हम सिन्धु दर्शन यात्रियों के साथ निकल पड़े लेह से कुछ दूर स्थित भारतीय विद्या निकेतन..शिंदु दर्शन यात्रा समिति और शायद एक दो और संस्थाओं के सहयोग से लद्दाखी बच्चों के लिए चलाया जा रहा आवासीय स्कूल यहाँ यात्रिओं का आदर अभिनन्दन होना था यहाँ भी लद्दाखी बच्चियों ने सबका पारंपरिक शैली में स्वागत किया और फिर मंच से इन्द्रेश जी ने देश भर से आये यात्रिओं का परिचय करते हुए सिन्धु दर्शन यात्रा के बारे में बताना शुरू किया इतनी ऊंचाई पर होने का अहसास लगातार प्राण VAYU कि कमी के चलते हो रहा था लेकिन इन्द्रेश जी के उद्बोधन से जुडाव होने लगा था उन्होंने बताया कि १९९७ में ये यता शुरू हुई थी और आज चौध्वी यात्रा के पड़ाव पर हैं और यात्रियों की संख्या आठ....अस्सी से आठ सौ हो चली है उन्होंने कहा कि इस यात्रा का मकसद धार्मिक और ऐतिहासिक होने से ज्यादा लद्दाख को देश की धड़कन से जोड़ना और यहाँ की आर्थिक सेहत सुधारना है इसके लिए उन्होंने आकडे भी दिए कि कैसे सिन्धु दर्शन यता महोत्सव ने टूरिस्टों की एक नयी पौध तैयार कर दी है ... सिन्धु दर्शन यात्रा के महत्व और अभिनन्दन एवम यात्रा के कार्यक्रमों के बारे में जानकारी देने के बाद शुरू हुआ सिंधियों का झूले लाल नांच गाना बाकि वृतांत अगली बार

3 टिप्‍पणियां:

Jandunia ने कहा…

खूबसूरत

Udan Tashtari ने कहा…

कुछ तस्वीरें भी दिखाईये तो मजा आये.

Dr.Ajit ने कहा…

उम्दा! ऊंचाई पर अपने लघु होने का बोध होता है...और साधनो पर निर्भरता कम...ऐसा मेरा व्यक्तिगत अनुभव है। आपने कुछ तस्वीरें नही ली क्या?
डा.अजीत
www.monkvibes.blogspot.com
www.shesh-fir.blogspot.com