सोमवार, मई 24, 2010
काम करो काम...सर काम ही तो करते हैं..
इस गलाफाड़ लिखाड़ कोआजकल कहा जा रहा है कि थोडा काम और बढाओ..मैंने मन ही मन सोचा दाम..?.. उसकी चिंता मत करो तुम...मंदी के बादल अभी छंटे नही हैं...नौकरी बचाओ बेटा नौकरी...मैंने..कुछ नहीं कहा...काम करना शुरू कार दिया...पहले से तेज रफ़्तार और जोश के साथ ...
बुधवार, मई 19, 2010
निकम्मे हम
घर से ऑफिस....फील्ड ..ऑफिस..घर..फिर ऑफिस..दिन में तापमान ४४-४५ डिग्री..फिर भी फील्ड में भागा-दौड़ जारी..बॉस का फोन ..ये छूट गया ..वो जा नहीं पाया..क्या करते हो यार..कब सीखोगे..उधर..पत्नी परेशान...बेटी को शिकायत..घर पर ठहरे दोस्त भौचक...लेकिन लाला का कहना कि सब निकम्मे हैं यहाँ..आजकल दिल्ली में जेरे-बहस यही है..दोस्तों...
सोमवार, मई 17, 2010
नक्सल नासूर
नक्सलवाद के खात्मे की कसम खा चुके चिदंबरम- रमण के लिए एकबार फिर चुनौती...दंतेवाडा में निरीह पांच दर्जन आदिवासियों को निशाना बनाया गया..उन आदिवासियों को जिनको बचाने की दुहाई देकर आदिवासी अंचल में पनाह पाए हुयें है..नक्सली..उधर केंद्र-राज्य सरकारें भी बैठ कर सोचें क्योंकि वे भी आदिवासियों को बचाने के लिए दृढसंकल्प दिखना चाहती है..आप भी सोचिये आखिर ये हो क्या तरह है..किसको बचाने के लिए किसको कौन मार रहा है..सवाल बड़ा है..आने वाले दिनों में ये सबको झुलसाने वाला है...क्या ऐसा नहीं...?
शनिवार, मई 15, 2010
बाबो सा का जाना
आज देश के पूर्व उप-राष्ट्रपति भैरोंशिंह शेखावत का निधन हो गया। शेखावत के निधन के साथ ही देश से जन सरोकारों की राजनीति करने वाले एक और युग का अंत हो गया। जमीन से उठकर देश फे उप-राष्ट्रपति बनने तक के सफ़र में बे कभी भी अपने जन-हितेषी पथ से विमुख या विचलित नहीं हुए। आज दिन भर उनके देहांत की खबर आने के बाद विभिन्न दलों के नेताओं और दूसरी हस्तियों से श्रदांजली बाईट लेते रहे। सबने एक ही बात कही कि वे राजनीति के सच्चे सिपाही थे । राजस्थान के बाबो सा को मेरा भी नमन..
शुक्रवार, मई 14, 2010
कटखने गडकरी
बीजेपी के कटखने राष्ट्रीय अध्यक्ष को भले ही पहलवान मुलायम ने माफ़ कर दिया हो और देर-सबेर कान पकड़कर माफ़ी मांगने पर माफ़ करने की जिद पकडे लालू भी मान जायें, लेकिन दादा कोंडके के इस पोते को जीव-जंतुओं के लिए मर-खट रहे पेटा जैसे संगठनों की पौ-पौ झेलनी पड़ सकती है। यहाँ तक कि जानवरों का जीवन बचाने के काम में लगी खुद गडकरी की पार्टी की सांसद मेनका गाँधी को भी उनका कटखना बयान नागवार गुजर सकता है। आखिर कुत्ते जैसे वफादार जानवर की भी अपनी कोई इज्ज़त -आबरू होती है की नहीं, कि आप जब चाहेंगे द्विअर्थी मुहावरों और फ़िल्मी संवादों का सहारा लेकर बेचारों की बेकद्री करते रहोगे। अपनी जात-बिरादरी (सियासी) के भाइयों की पहचान करने और उन्हें सियासी नूर-कुश्ती में मात देने के लिए गडकरी कोई और मुहावरों की खोज भी तो कर सकते थे। आखिर क्या ज़रूरत थी लालू-मुलायम को तलवे चाटने वाले कुत्ते कहने की। भला क्या अब तलवे चाटने का काम सिर्फ पालतू कुत्तों के हिस्से ही बचा है..क्या तलवा चाट दौड़ में नेताओं ने कुत्तों को नहीं पछाड़ दिया। गडकरीजी जरा अपने ही आस-पास नज़र घुमा कर देख लेते या फिर केशव कुञ्ज हो आते या फिर नागपुर तो आपका अपना शहर है। आप खूब जानते है नेताओं की इस नस्ल के बारे में..और अगर संघ में आपकी पहुँच से आपके हुनर को लेकर कुत्तों को रश्क हो गया तो। फिर भला कुत्ता-कुत्ते चिल्लाकर नाहक ही इन वफादार जानवरों को भौकने पर मजबूर कर रहे हैं आप। लेकिन क्या उम्मीद की जाये की दादा कोंडके के इस पोते को ये ज्ञान मर्यादा, संस्कार और राष्ट्र के सांस्कृतिक उत्थान के अलमबरदार बने फिरते भगवा पाठशाला के संघी गुरुजन दे पाएंगे? मुझे तो उम्मीद कम ही है..आपको?
गुरुवार, मई 13, 2010
परिचय
पिछले करीब पांच सालों से ब्लॉग पढने के जरिये चिट्टाजगत का हिस्सा रहा हूँ , लेकिन अब तक अपना ब्लॉग बनाने-लिखने की हिम्मत नहीं हो रही थी। हिम्मत इसलिए नहीं की क्या लिखूंगा, बल्कि इसलिए कि कम्बखत स्वभावगत सुस्ती और आलस्य नियमित लेखन करने भी देगा। इस दौरान मित्रों ने खूब कहा कि लिखो भाई शुरुवात टो करो..खासकर मित्र अजीत ने टो हर बार मुलाकात करते उर पूछा कि क्या ब्लॉग बनाया? यहाँ तक कि अपने ब्लॉग पर छपे नए छित्तों के माध्यम से भी ब्लॉग्गिंग से परोक्ष रूप से जुड़ने कि प्रेरणा देते रहे। आलस्य की चादर उतार पिछले दिनों एक ब्लॉग बनाया भी...प्रहार..माफ़ कीजिये' मेरा प्रहार ' किसी और पर नहीं बल्कि मेरी अपनी ही खामियों-कमियों पर हमला बोलते हुए, आस-पास घट-बढ़ रहे समय को लेकर मेरी सोच का आइना होगा
बाकि आप चिट्टाजगत के वरिष्ठजनों का स्नेह और मार्गदर्शन तो मिलता ही रहेगा...
बाकि आप चिट्टाजगत के वरिष्ठजनों का स्नेह और मार्गदर्शन तो मिलता ही रहेगा...
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