मांगने से रास्ता मिल नही रहा था अब छीनने की ज़िद पाली है...
शुक्रवार, जुलाई 16, 2010
बुलबुल
मन अनमना मृत्यु को गले लगा लूँ क्या उसने कहा भाग जाओ जो बच सको लेकिन जेब में छुपाकर दो अपनी बुलबुलें भी लेते जाओ बुलबुलें.. जेब में हाथ दिए लौट रहा मन अनमना ..
1 टिप्पणी:
उम्दा रचना एक दार्शनिक प्रवाह लिए...लेकिन प्रतीक यदि सरल हो तो मेरे जैसे अज्ञानी को समझने मे सुविधा रहेगी...
लेखन सार्थक हो रहा है...जारी रखे...।
डा.अजीत
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