मंगलवार, जून 29, 2010

उड़ान लेह की

इस बार लम्बा समय लगा अपने ब्लॉग की सुध लेने का..क्योंकि इस बार दिल्ली तक ही अपनी गला फाड़-लिखाड़ पत्रकारिता नहीं हुई बल्कि अबकी बार लेह की ऊँची पहाड़ियों में भी चिल्लाने का मौका मिल गया हुआ यूँ कि अपने को चौदहवी सिन्धु दर्शन यात्रा को कवर करने के लिए सेठ लोगों(मेरा चैनल) ने लेह जाने का फरमान सुनाया...मेरे लिए तो ये दूसरा मौका था आउट डोर शूट पर जाने का..और वो भी हवाई जहाज़ से सो फरमान मिलते ही मन मचलने लगा कि चलो इसी बहाने ज़मीन पर जगह न मिल रही हो तो न सही इस ग़ुरबत में आसमान में ही कुछ ज़मीन नाप अपने नाम कर ली जाये..इस शूट को लेकर एक उत्साही होने कि एक वजह ये भी थी कि इसका आयोजन संघ परिवार से जुड़े लोग ही करवा रहे थे..बड़ी आलोचना होती है अपनी बिरादरी में भगवा ब्रिगेड की लेकिन सच कहूँ तो अपने को कभी भी बिना स्वयं जाने मज़ा नहीं आता किसी को भी गरियाने में.इसीलिए सोचा कि चलो देखे इनको भी करीब से..२३ की सुबह ऑफिस की गाड़ी ने ४ बजे ही दस्तक दी और मैं पहले से मौजूद अपने कैमरा सहयोगी धीरेन्द्र साहू के साथ हो लिया हवाई अड्डे की तरफ रवाना साथ में रत की पाली के रिपोर्टर भी बैठे थे जो अपने अति उत्साह के चलते घरेलूकी बजे अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर लेकर पहुँच गए ६.३० की फ्लाईट थी और ५ वही बज गए थे.. किसी ने नसीहत दी थी की फ्लाईट से १.३०-२.०० घंटे पहले पहुँचाना होता है..५.१५ बजे घरेलू हवाई अड्डे पहुंचे और जैसे तैसे जेट की परिचारिकाओं से पूछताछ कर टिकेट और सुरक्षा सम्बन्धी ओपचारिक्ताओं से फारिग होकर जेट की बस पकड़ प्लेन की और भागे..आसमान में कागज के हवाई जहाज़ जैसा दिखने वाला प्लेन नज़दीक गए तो बड़ा विशालकाय नज़र आया दो खूबसूरत और छरहरी परिचारिकाओं ने टिकेट चेक कर मंगलमय यात्रा की शुभकामनाओं के साथ प्लेन में चढ़ने के लिए आमंत्रित किया और मैं और साहू चढ़ बैठे जेट के उड़न दस्ते में साहू पहले भी एक आध बार उड़ चुका था लेकिन अपने लिए तो हर पल कौतुहल था जसे ही शीट बेल्ट बंधने का आदेश हुआ और जहाज़ रनवे पर सरपट दौड़ने लगा अपनी सांसे भी अटकने लगी साथ ही रोमांच भी जहाज़ के साथ सातवे आसमान पर पहुँच गया था१.३० घंटे के बाद लेह की बर्फीली वादियों में उतरना किसी बिन मांगी हसीन मुराद के पूरा होने जैसा था लेह के छोटे से एयर पोर्ट पर उतरे तो शीत लहर ने स्वागत किया वैसे प्लेन से उतरने से पहले ही आगाह कर दिया गया था कि तापमान ७-८ डिग्री से ज्यादा नहीं मिलेगा झट शरीर को ओवर कोट के हवाले कर हम होटल कि राह हो लिए जहाँ कुछ अपरिचित लोगों ने परिचितों जैसा व्यवहार कर लेह में भी अपनत्व का भाव पैदा कर दिया...
अब सिन्धु दर्शन यात्रा अगली किस्तों में होगी फ़िलहाल तो मोर्निंग ड्यूटी है और ८ बजे के बुलेटिन में लाइव कर इतना सब लिख डाला लेकिन अब आदेश हुआ है कि कांग्रेस मुख्यालय की तरफ जाया जाये क्योंकि सरकार ने आम आदमी की रसोई का नून-तेल महंगा करने के बाद फेफड़ों को अपने धुऐं से सकती गाड़ियों का तेल-पानी भी महंगा कर दिया है जय जवान जय किसान का नारा देनेवाले पूर्व प्रधान मंत्री स्वर्गीय शास्त्री के बेटे ने विरोध कर दिया है सरकार के फैसले का सोनिया गाँधी से हस्तक्षेप की मांग की है जैसे जब मनमोहन साहब तेल महंगा कर रहे थे तब सोनिया जी सो रही थी...क्या दिल्ली दरबार में भी दिए टेल अँधेरा रहता है...? जाता हूँ किसी कांग्रेसी से पूछकर बताऊंगा ...

बुधवार, जून 16, 2010

मंदी..और मेरा मानसिक मेल्टडाउन

आजकल दिलोदिमाग में यही सवाल बार बार उमड़ रहा है कि क्या अब मीडिया से तौबा कर ली जाये क्योंकि अब यहाँ न बड़ा पत्रकार बनने कि गुंजाईश बाकि रही है और न ही पैसा ही रहा है जी हाँ अब लगने लगा है कि यहाँ और खटने की बजाय अन्य विकल्पों पर भी विचार कर लेना चाहिए..कहीं ऐसा न हो की अपने तथाकथित पैशन के चाकर में पत्नी-बेटी के भविष्य से खिलवाड़ हो जाये..लेकिन मन के एक कोने से फिर यही आवाज़ आती है कि यार क्या इस फिएल्ड में सिर्फ नाम और पैसा ही कमाने आये थे या कुछ करने का जज्बा लेकर ये सोच कर फिर काम करने लगता हूँ लेकिन तभी कोई मित्र या शुभचिंतक नसीहत देता है कि भाई जरा पीछे मुड़कर अपने पञ्च साल का हिसाब तो लगा कि तेरे चैनल ने क्या दिया इस दौरान और आगे बता कि क्या दे देगा मैं दलील दे देता हूँ कि यार एक बुरा फेज़ गुजर चूका है और जल्द अच्छे दिन आयेंगे दोस्त मन मारकर चुप भी हो जाता है लेकिन सुबह सैट बजे ऑफिस पहुँच कर शाम सात चालीस की ७५३ नंबर बस पकड़ कर जब भीड़ की ढाका-मुक्की में मन एकाग्रचित होकर सवाल करता है की क्यों पिछले बारह घंटों की मेहनत के बाद क्या लेकर जा रहे हो अपनी पौने तीन साल की नन्ही जन के लिए पत्नी के लिए तो खैर कभी कुछ लेकर गया ही नहीं क्या हम छोटका चैनलों के छोटके पत्रकारों के दिन भी कभी बहुरेंगे बहरहाल मंदी छटने लगी है दुनिया की अर्थ्ब्यावास्थों से और मेरे मन से भी.. मानसिक मेल्ट डाउन...

शनिवार, जून 05, 2010

परीक्षा हाल

पिछले ३-४ वर्षों के बाद एक बार फिर परीक्षा हाल का नजारा देख रहा हूँ..अपनी ३-४ साल से पूरी नहीं हो पा रही पत्रकारिता की मास्टर डिग्री को पूरा करने की सोची है। एक तो इग्नू से पीजी डिप्लोमा करने में ही ३-४ साल लग गए..साथ दाखिला लेने वाले भाई लोगन तो मास्टरी भी करने लगे है..लेकिन अपन आज भी नांगलोई के नाथू राम कॉन्वेंट स्कूल में एम ए फ़ाइनल इयर के पेपर दे रहे है..जैसे तैसे दो तो निपट-निपटा गए बाकि तीन भी निपट जायें..दरअसल..जैसे तैसे पेट पूजा हो ही रही है लेकिन किसी ने कहा पीजी डिप्लोमा है तो लेटरल टर्म से केयूके से एम ए कर लो..किसी साथी ने नसीहत दी और कुछ नहीं तो कम से कम इस मीडिया की भीड़ से जब बाहर ढेल दिये जाओगे तो कहीं पढ़ा तो लोगे..या फिर कहीं पीआरओ ही बन जाना..पांच साल की पत्रकारिता की थकेती के बाद अब कभी कभी मुझे भी सोच कर डर सा लगने लग जाता है..और इसी डर की जद में खुद को परीक्षा हाल में पसीना-पसीना पाता हूँ...दिन में परीक्षा देता हूँ तो रात्रि पली में ऑफिस में ड्यूटी बजाता हूँ...ऑफिस आया तो पता चला कि मुझे सोमवार अल सुबह ही चंडीगढ़ के लिए निकलना है..सूचना और प्रसारण मंत्री अम्बिका सोनी राज्यसभा के लिए नामांकन भरेंगी...रविवार को गाँव भी जाना है कई दिनों के बाद..गाँव में पंचायत चुनाव का सीजन है...हाँ राजीव गाँधी दे गए गाँव वालों को भी प्रधानी करने का मौका..ठीक है इसी बहाने गरीब लोगों के होटों पर भी देसी-विदेशी नमकीन पानी लग जाता है..वर्ना वोट तो वैसे भी किसी न किसी को तो देना ही होता है..घर में रखकर कौन सा मुरब्बा बनता है इसका ॥