रविवार, फ़रवरी 13, 2011

बीमार शहर के हम मरीज

हम मरीज ही तो हैं
इस बीमार शहर के
जो चले आते हैं
इलाज की उमीद में
और
कई बिमारियों की ज़द में
खुद को फंसा देने की खातिर
यहाँ
वहां
माँ हैं जो बुलाती है
लौट आने की नहीं कह पाती
क्योंकि
उसने
संतोष करना ही तो सीखा
अपने पिता से मेरे पिता की होते जाने में
अब जब पिता हूँ मैं भी
माँ
फिर संतोष कर लेती है
शायद एक दिन पोती ले आये
बीमार शहर के मरीज को
गाँव की छाव में