मंगलवार, जुलाई 27, 2010

गैस का चूल्हा
खाली
सिलेंडर
दिल्ली के हम
कैसे कलंदर
कल
घर मेरे आये थे
दोस्त
चाय पर
प्याले में
होने का अहसास कराते
दूध-पत्ती-चीनी
और
दोस्तों के बीच मैं भी
तभी
दोस्त बोल पड़ा
यार..पवन
छ साल हो गए
दिल्ली में अंगद के पाँव की तरह जमे हो
सच यार तुम ही
विकटअर्स की सिटी के
असली विक्टर हो
मैं बिस्कुट के टुकड़ों
और
बेटी की नन्ही उँगलियों
के बीच
अपना साम्राज्य
तलाशता
दोस्त के नए शेर की दाद
दे रहा था..

1 टिप्पणी:

Dr.Ajit ने कहा…

क्या बात है पवन जी आप तो कमाल का लिख रहें है आजकल! विक्टर्स की सिटी की बात चुभने लायक ही है...

डा.अजीत