बुधवार, जून 16, 2010

मंदी..और मेरा मानसिक मेल्टडाउन

आजकल दिलोदिमाग में यही सवाल बार बार उमड़ रहा है कि क्या अब मीडिया से तौबा कर ली जाये क्योंकि अब यहाँ न बड़ा पत्रकार बनने कि गुंजाईश बाकि रही है और न ही पैसा ही रहा है जी हाँ अब लगने लगा है कि यहाँ और खटने की बजाय अन्य विकल्पों पर भी विचार कर लेना चाहिए..कहीं ऐसा न हो की अपने तथाकथित पैशन के चाकर में पत्नी-बेटी के भविष्य से खिलवाड़ हो जाये..लेकिन मन के एक कोने से फिर यही आवाज़ आती है कि यार क्या इस फिएल्ड में सिर्फ नाम और पैसा ही कमाने आये थे या कुछ करने का जज्बा लेकर ये सोच कर फिर काम करने लगता हूँ लेकिन तभी कोई मित्र या शुभचिंतक नसीहत देता है कि भाई जरा पीछे मुड़कर अपने पञ्च साल का हिसाब तो लगा कि तेरे चैनल ने क्या दिया इस दौरान और आगे बता कि क्या दे देगा मैं दलील दे देता हूँ कि यार एक बुरा फेज़ गुजर चूका है और जल्द अच्छे दिन आयेंगे दोस्त मन मारकर चुप भी हो जाता है लेकिन सुबह सैट बजे ऑफिस पहुँच कर शाम सात चालीस की ७५३ नंबर बस पकड़ कर जब भीड़ की ढाका-मुक्की में मन एकाग्रचित होकर सवाल करता है की क्यों पिछले बारह घंटों की मेहनत के बाद क्या लेकर जा रहे हो अपनी पौने तीन साल की नन्ही जन के लिए पत्नी के लिए तो खैर कभी कुछ लेकर गया ही नहीं क्या हम छोटका चैनलों के छोटके पत्रकारों के दिन भी कभी बहुरेंगे बहरहाल मंदी छटने लगी है दुनिया की अर्थ्ब्यावास्थों से और मेरे मन से भी.. मानसिक मेल्ट डाउन...

2 टिप्‍पणियां:

राम बंसल/Ram Bansal ने कहा…

मित्र, अभी परिवार के पालन-पोषण का समय है. ५० के बाद ही ऐसी ज़िद पकड़ना.

Dr.Ajit ने कहा…

risk me jiyo ya risk lo faisla aapka hai dost..

dr.ajeet