बुधवार, सितंबर 29, 2010

नई इबारत

३० सितम्बर
फैसले की घड़ी
या...
नई इबारत
लिखने का अवसर
तय...
हम ही को करना..
अदालत
फैसला सुनाती है
सिर्फ
मायने हम ही को गाड़ने होते हैं
उसके
आने वाली नस्लों को
नई सुबह देने का अवसर
फिर आया
मखमली दोस्ती
या रक्तरंजित भाईचारा
क्योंकि
भाई-भाई होने से
तो बलवाई भी
नहीं रोक सकता हमको
क्या रोक सकता है..?
२ अक्टूबर को
बापू के लिए जब कुछ देर का वक़्त निकालेंगे
तब तुम और हम ही को ये सोचना है
इसबार
अवसर है...

बुधवार, सितंबर 15, 2010

माँ

न सिक्का न स्याही और न सरकार
अजीब शख्स है बस दुआ चाहता है
घर के सेहन की हो रही है किलेबंदी
शाम घर लौटे तो वो बस माँ चाहता है ...दिलबर

बुधवार, सितंबर 08, 2010

दोस्ती

तमाम उम्र दोस्ती में गुजार डाली
मुहरबंद लिफाफे की दोस्ती कमा ली
वो कह कर गया है कि नहीं लौटेगा
आखरी वक्त में ये अना कैसी कमा ली