शुक्रवार, मई 14, 2010

कटखने गडकरी

बीजेपी के कटखने राष्ट्रीय अध्यक्ष को भले ही पहलवान मुलायम ने माफ़ कर दिया हो और देर-सबेर कान पकड़कर माफ़ी मांगने पर माफ़ करने की जिद पकडे लालू भी मान जायें, लेकिन दादा कोंडके के इस पोते को जीव-जंतुओं के लिए मर-खट रहे पेटा जैसे संगठनों की पौ-पौ झेलनी पड़ सकती है। यहाँ तक कि जानवरों का जीवन बचाने के काम में लगी खुद गडकरी की पार्टी की सांसद मेनका गाँधी को भी उनका कटखना बयान नागवार गुजर सकता है। आखिर कुत्ते जैसे वफादार जानवर की भी अपनी कोई इज्ज़त -आबरू होती है की नहीं, कि आप जब चाहेंगे द्विअर्थी मुहावरों और फ़िल्मी संवादों का सहारा लेकर बेचारों की बेकद्री करते रहोगे। अपनी जात-बिरादरी (सियासी) के भाइयों की पहचान करने और उन्हें सियासी नूर-कुश्ती में मात देने के लिए गडकरी कोई और मुहावरों की खोज भी तो कर सकते थे। आखिर क्या ज़रूरत थी लालू-मुलायम को तलवे चाटने वाले कुत्ते कहने की। भला क्या अब तलवे चाटने का काम सिर्फ पालतू कुत्तों के हिस्से ही बचा है..क्या तलवा चाट दौड़ में नेताओं ने कुत्तों को नहीं पछाड़ दिया। गडकरीजी जरा अपने ही आस-पास नज़र घुमा कर देख लेते या फिर केशव कुञ्ज हो आते या फिर नागपुर तो आपका अपना शहर है। आप खूब जानते है नेताओं की इस नस्ल के बारे में..और अगर संघ में आपकी पहुँच से आपके हुनर को लेकर कुत्तों को रश्क हो गया तो। फिर भला कुत्ता-कुत्ते चिल्लाकर नाहक ही इन वफादार जानवरों को भौकने पर मजबूर कर रहे हैं आप। लेकिन क्या उम्मीद की जाये की दादा कोंडके के इस पोते को ये ज्ञान मर्यादा, संस्कार और राष्ट्र के सांस्कृतिक उत्थान के अलमबरदार बने फिरते भगवा पाठशाला के संघी गुरुजन दे पाएंगे? मुझे तो उम्मीद कम ही है..आपको?

6 टिप्‍पणियां:

nitin bhatt ने कहा…

Pawan ji from last five year you r not getting the opportunity to express your comments because a demon is suppresing your abilities but now with the begining of "Mera Prahar' you have once again proved your killer instinct. I had read your mind opening article on Nitin Gadkari and the double standards adopted by the politicians. I wish you all sucess .....God bless u ...keep it up friend.

Nitin Bhatt

Dr.Ajit ने कहा…

राजनीति मे भाषा की मर्यादा अब गुजरे ज़माने की बात हो गई है और रही बात पिछडो की तो कुलीन और अभिजात्य राजनीतिज्ञों को ये कहाँ गवारा कि देहात का भदेस आदमी संसद मे हुंकार भरे...

फिर भी ज़बान का संभालना जरुरी है...

डा.अजीत

www.shesh-fir.blogspot.com
www.monkvibes.blogspot.com

संजय भास्‍कर ने कहा…

हिन्दी ब्लॉगजगत के स्नेही परिवार में इस नये ब्लॉग का और आपका मैं हार्दिक स्वागत करता हूँ.

बेनामी ने कहा…

"कुत्ता-कुत्ते चिल्लाकर नाहक ही इन वफादार जानवरों को भौकने पर मजबूर कर रहे हैं" भाषा यो या व्यव्हार - अति निम्नस्तरीय हो चुका है

अजय कुमार ने कहा…

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

RAJENDRA ने कहा…

जात बिरादरी वाले भाइयों के बीच हम लोगों को तो आना ही नहीं चाहिए