कमरे की खिड़की से
बाहर झांकता हूँ तो
बिटिया
कुम्लाये गुलाब में
पानी दे रही थी
बेटी रहने दे क्यों काँटों को सींच रही हो
मैंने कहा
बिटिया कहती है
पापा कांटे हैं तो फूल भी आयेंगे
मैंने कहा बेटी कांटे रह जायेंगे
इस गुलाब के फूल की आस में
कई गुलदान हैं
इस साल 18 की हो रही बिटिया
जल्दी से बाल्टी का पानी
गमले में उड़ेलती है
मैं खिड़की से अन्दर झांकता हूँ
और
काँटों से लहूलुहान उँगलियों के पोर
मेरी कमीज को लहूलुहान करते जा रहे हैं
आँखें दीवार पर टंगे कलेंडर पर टिकती हैं
और मैं 65 वर्षों के हिसाब-किताब में खो
रहा हूँ